भाटै रे लौटबा सूं पैलीज

किनारा पर उग आया

कतराइज कांटा,

जुवार उठण सूं पैली, जठै बोया हा

सुपनां रा देवदार।

अर जठै खींच दी ही

यादां री लिछमण रेखा

नकार दी है जी नैं।

कळपती आस्थावां पर भरोसा रा

तूटता सुर, हर वार।

सांची है,

समै रा रेगिस्तान में

उडीक!

एक कांटादार सांच उगावै है।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : प्रेम शेखावत पंछी ,
  • संपादक : दीनदयाल ओझा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित संगम अकादमी