सांकळ री कड़ियां ज्यूं

आंख्यां फाड़-फाड़’र

थनै उडीकतौ रैयौ म्हारो हेत

पण थूं आयौ कोनीं

लाग्यौ, थूं

राधा रौ कान्हौ बणग्यौ

अर ईं टेम

चौराया आळी होटलड़ी रौ चाय रौ भरियौ कप

म्हारै गळै उतरियौ कोनी

अठै थारी अणमौजूदगी

म्हनै खटकती रैयी म्हारा हेत

जांणै आंख्यां मांय तिणकलौ पड़ग्यौ

अर आंख्यां सूं टळकता मोती

गालां सूं उतर’र हिवड़ै रै समदर में

भेळा हुयग्या

पण तौ थूं इणरी छोळां में आयौ कोनीं

म्हारै हिवड़ै री कांई बात करूं

लाय लगावती थारी उडीक

उफण’र आयी

तद उकळती चाय रौ कप ठंडौ हुयग्यौ

अर म्हैं उडीकतौ रैयौ म्हारा हेत

सांकळ री कड़ियां ज्यूं आख्यां फाड़-फाड़’र।

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : उडीक ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : पहला संस्करण