कोई सिद्धान्त-विदान्त नीं

यांई-थोथा चणा-बाजै घणा

काम थोड़ौ-रोळौ-रफो घणौ

म्हानैं घड़गी-बाड़ मैं बड़गी

म्हारौ हियौ पूछै—

क्यूं मारै उल्टी-सुल्टी फांफ?

जे होता—

कागलां रे काछड़ा

तो—

उडतां रे दीसता।

स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : रूपसिंह राठौड़ ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन