तप-तप नै गरम हुयो

फेर तप्यौ

गरम हुयौ

पांणी री बूंद पड़ी

'त टूट' करतो टूटग्यौ

काच रौ गोळौ

म्हारी चिमनी रो।

स्रोत
  • पोथी : झळ ,
  • सिरजक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : जुगत प्रकासण, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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