याद करतो हो तनै

कदै

बतळावण

रूप निरखण'र

दैहिक संबंध री

साथ पूरण सारू

पण

अबै तनै

याद करूं

जीवण अर संभालण

सुधारण’र

उजाळण सारू

तू जठै है

म्हारै सामै

देही, अदेही

पवन, तूफान, आंधी, बिरखा

सूरज, चांद, सितारा

तातो तावड़ियो, छांया

बसंत री सोरम

जीवण री आस

चेतना री सांस

बण आव

बेगी आव

तू थारी ओळू नै

ओळू रै मनमेळू भाव नै

परतख दरसाव

म्हारै डूबते

जीवण नै तारण सारू

कीचड़ में पड़तै पगां नै

उबारण सारू

धूजते डील नै

संभालण सारू

तू जठै है— आव।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : दीनदयाल ओझा ,
  • संपादक : भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : अंक – 5