तूं अेक आकास हो

मतलब आभो

घणो लांबो चवड़ो

अणूतो फैलाव लियोड़ो

जठीनै देखां

बठीनै तूं, फगत तूं

म्हैं थनैं देख देख’र

करतो अचूंभो

आज भी हुवै

घणो इचरज

कै इतरी बडी चीज नैं

बणावण वाळो

आप कितरो बडो हुसी

कुण जाणै...?

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : संजय आचार्य ‘वरुण’ ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण