बैढ़ंगी सिंज्या रै

गथमगथ बादळां रै मांय

की कड़ियां है

जंजीर रै उनमान

गाढ़ै रंगां सूं भीजेड़ी

तीतरपंखी कड़ियां

सौरम सूं सराबोर

अकथ सबदा में खोयोड़ी

इण बंध्योड़ी सिंज्या नैं खोलो

ओछै कदआळो पेड़

साव अबोलो ऊभो है

पानबिहूण

हवा री हल्की कम्पन नैं

नकारतो

सिंज्या रा सोवणां रंगा नैं

कुचरतो

पण इण नैं बांधो मत

तीतरपंखी

बादळां सूं

घणो हेठै है।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत काव्यांक, अंक - 4 जुलाई 1998 ,
  • सिरजक : कृष्णबिहारी सहल ,
  • संपादक : भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी