म्हां उणींदी गेळ मांय

गेळिज्या

झेल रिया हां अेक

भासाई तिरस...

मेटण री तजबीज करै

सुपनां रै समंदां रा

ठण्डा लहरका

पण

झेरां रै झपकै सूं

चेतज्या

चेतणा रो हपड़को

सूकज्या समंदर

अर तिरस... बठै री बठै...

जद जद

अदखुली आंख्यां सूं

निरखीजै

चेतणा रो सांच

गाफल नैणा सूं

लगाइज जावै

किणी सूं आस

पण खुद रै नीं चैत्यां

कद हुयी

किणी री पूरी आस

सांच है

इणनै कथणो पड़सी

चेतो राख्यां सूं

हो सी सगळा काज

बस-

चेतणो पड़सी

चेतणो पड़सी।

स्रोत
  • पोथी : चौथो थार सप्तक ,
  • सिरजक : भंवर कसाना ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन