थारै पाण,

लगा लिया पांखड़ा

ऊभगी मेड़ी पर

पण क्यूं डरपै है काळजो

उडण रै नांव सूं...

थारै पाण,

कर लियो सिणगार

बैठगी डोली में, पण

क्यूं घबरावै है जीव

उण अणसैंधा गांव सूं...

थारै पाण,

बांध लियो भरोसो

चाल पड़ी लारै, पण

क्यूं रुक-झुक खरूंचूं

आस री जमीं पांव सूं...!

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : सिया चौधरी ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham