कतनी सुखी छै

या छोटी-सी चड़ी

जद बी मन में आवै ईं कै

झट सूं उड़ जावै छै

जी में आवै जठी

नाप्यावै छै धरती अर आकास नै फुर्र सूं

बैठे छै साता खाबा

कदी पेड़ पै

कदी घास में फुदक-फुदक कै

खेलबा लग ज्या छै

अणजाण्या

चड़ा-चड्यां लारै

कोई न्हैं पूछै ऊं सूं

कोई न्है बरजै ऊं नै

अरी के तू फर री छी की कै साथै सारा दिन

अर कस्या रूंख पै काटी आखी रात थनै?

अर या गाई माई

या बी तो मरजी की छै मालक

चरबा-फरबा चावै जठी चल दै छै

सो जावै छै

बीचू-बीच सड़क कै माथै

गाड्यां-घोड़ा

लोग-लुगायां

आगै-लुगायां

आगै-पाछै सूं

खड़ ज्या छै सूं बच कै

अर ईं चींटी नैं बी देखो

अपनी धुन में

अठी-उठी

कांई बी करती

फरती र्हबै

अरतां-फरतां

मल जावै जद चावै जसी दूजी चींटी तो

काणांफूसी करबा लागै

काणां कांई दोनीं

कोई न्हैं क्हैवै ऊं सूं

कोई न्हैं बरजै ऊंनै

अरी कै तू कीं कै गोड़ै

इसक लड़ावा गी छी?

अर या गिलैरी

अर या ऊंदरी

यां की बी तौ कतनी चैन की कटरी छै

न्हैं घूंघटौ पड़ै काढणां

न्हैं डाइजा का सोळा में

जीवतां बळबा कौ डर छै

कोई खसम यांनै

पांवां की जूती क्है कै

ठोकरां सूं आडी न्है पाड़ै

पण या भापड़ी औरत?

कांई बताऊं!

हाय विधाता!

हाय री दुनियां!

हाय री मरदां हाळी माया!

म्हूं कांई क्हूं?

म्हूं कांई कहूं?

थां सोचौ!

थां जाणौं!

स्रोत
  • पोथी : आंगणै सूं आभौ ,
  • सिरजक : कृष्णा कुमारी ‘कमसिन’ ,
  • संपादक : शारदा कृष्ण ,
  • प्रकाशक : उषा पब्लिशिंग हाउस ,
  • संस्करण : प्रथम