धरती आभै

जितरी लांठी

थारी

कद काठी।

बावळ सरीसौ

थारौ सांस।

समदर रै उनमान

पसराव।

नीं थाकै

नीं हारै

थूं।

वाह रे

थळवट रा उमराव।

स्रोत
  • पोथी : जातरा अर पड़ाव ,
  • सिरजक : मीठेश निर्मोही ,
  • संपादक : नंद भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम