रसोई घर है- दवाखाणो

अठै मिलै है- हींग, लहसण,

हळधी-धाणा, राईदाणो।

देख आवती!

चन्दरमा री बारात

रात भर...! रुक गई रात।

फूल हियै रो खिल जावण दै

खिड़की खोल!

हवा आवण दै!

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत अगस्त-सितंबर ,
  • सिरजक : कन्हैयालाल ‘वक्र’ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृत अकादमी, बीकानेर