कानाबाती रा

तार बिछावण सारू

खोदै खाई

अेक मशीन

देख’र मैं सोच्यो-

ओ'ई काम

मजूरां नै मिलतो

तो कित्तां रो पेट भरतो

दूजै दिन कीं

गौर स्यूं ख्यांती

तो कीं सावळ लागी

बा खाई इत्ती

डुंगी खोदै

के म्हनै लाग्यो-

आदमी स्यात इत्ती

खोद सकै

पण दस-बारहै

दिनां बाद

मैं देख्यो

कै सड़क रै किनारै

जठै दरख्त अड़न लागग्या

बठै मजूर

खाई पटण लागग्या

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : निशांत ,
  • संपादक : डॉ. भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थान साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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