च्यानणी रात रै

चमकतै चांद साथै

म्हारै साम्हीं हंसै हा तारा।

पछै!

अेक तारो टूटग्यो

अर बाकी सैंग

म्हासूं रूठग्या।

तारां रो रूठणो

अर म्हारो हंसणो

चालतो रयो आखी रात।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली लोक चेतना री राजस्थानी तिमाही ,
  • सिरजक : संदीप ‘निर्भय’ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ