पीस घणों पर कम खाया कर
खावण में बस गम खाया कर
तूं है बहू बड़ी संस्कारी
सहनशीलता आदत थारी
मूंढै पर ताळो राख्या कर तू तो मण-मण को।
तन्है कोई अधिकार नहीं है सामीं बोलण को।।
ब्याव थोड़ी हो थारो बावळी तन्हैं अडाणै मेली
अब जियां बे राखै बियां ई तन्है रेेवणो गैली
तड़कै च्यार बज्या उठ्या कर पोटा पूस कर्या कर
चूल्हो चोको साफ-सफाई पाणी उठ भर्या कर
टाबर है नीं थारै स्हारो हंस बतळावण को।
तन्है कोई अधिकार नहीं है सामीं बोलण को।।
सास ससुर नाजोगा है तो ई तन्है करणी सेवा
तू तो पढ़ी लिखी है जाणै सेवा में ही मेवा
पति तो साक्षात् परमेसर मान हमेसा राखी
जै बे हाथ उठा ई ले प्रसाद समझ कर चाखी
काम थारो आ सब बाता नै सिर पर धारण को।
तन्है कोई अधिकार नहीं है सामीं बोलण को।।
तन्है तो बस हंसणो है हरदम देख कदै मत रोई
परछाई भी जाण सकै नीं थारै दुख है कोई
मां बापू कै आगै बातां करजै मीठी ताजी
कईजै सातूं सुख है माऊ देख रामजी राजी
खुणों ई खांडो मत करजै तूं मन के दर्पण को।
तन्है कोई अधिकार नहीं है सामीं बोलण को।।
मां की बीं सीखड़ली नै तूं कदै मती बिसराजै
ऊबी आई है सासरियै अब आडी ई जाजै
अर थारै बां सपना की तूं अेक सांकळी कर लै
देख ऊंचलै कोई आळै में सारा नै धर लै
तूं खुद मरगी गम क्यै सपना के मरजावण को।
तन्है कोई अधिकार नहीं है सामीं बोलण को।।