टमरक टूं, टमरक टूं।
एक कमेड़ी
बैठ खेजड़ी
मिसरी घोळी सुख सुर स्यूं
सूनी रोही,
जागी सोई
पाछी बोली यूं री यूं
बोल अजाण्यो
मैं के जाण्यो?
हुई गिदगिदी म्हारै क्यूं,