अेक दाडे
मने अेक सवाल मल्यो
सवाले मारु नाम पुछ्यु
मैं जारे मारु नाम वताड्यु
तो इ मने ऑखों फाड़ीने जोवा लाग्यो
केवा लाग्यो
सुरी तू तो घणी रुपाळी
तू तो आदिवासी लागती नती
तारु पेरण अेवु नती तारी बोली पण अेवी नती
तू तो आदिवासी लागती नती
सवाल ना विचार जाणी
म्हूं विचारवा लागी
के आदिवासी ने केवु होवू जूवै
आदिवासी नू पेरण, आदिवासी नु जेवर
आदिवासी नी बोली केवी होवी जूवे
आदिवासी ने वगडा हुदी रेवु नियति है के हूं है
स्हैर आव्वा नो हक नती?
आगळ वदवा नो हक नती?
पेले रूखडे कुदता जोवा चाहो के हो चाहो?
मने अेवु लाग्यु के अेने
मारो आ रंग रूप जुदो लागो
मने रेवणु नी
मैं पूछी नाख्यु
आखिर हूं है
अेनी नजर मांय
आदिवासी सुरी?
अेक वार फेर ई मने जोवा लाग्यो
अेना मन तो अजी पण आदिवासी नी बीजी सकल
अती शरीर माथे पाने लपेटी
हाय मांय गुफण ने नै हरिया-कामटी वाळी
मने खबर नी पडती है
के आखर आदिवासी ना लिदे
अबार तक केम अेवी धारणा बणावी राखी है
मनख भणीनै आगल वदी गियू
पण इनी बुद्धि अजी देहाती वाळी है
भणी ने सभ्य तो बणी गियं
सेतर बढिया पेरी लीदं
पण विचार बढिया नी थ्या
विचारों थकी तो इ अजी
अदुरू अने देहाती है।