आठ बजी दिनूगै

जद पाणी रा छांटा न्हाख’र

कूकड़ै नैं माडाणी जगायो

तो वौ रीसां बळतो बोल्यो -

थांनै ठा कोनी

आज म्हारी छुट्टी रो दिन है?

कांई म्हैं अेक दिन आराम नीं कर सकूं

काची नींद रै सुपनां में रंग नीं भर सकूं।

फेर जद सूरज कानी देख्यो

तो लजखाणो होयनै कैयो

म्हैं सूरज रो हलकारो

हलकारै नैं छुट्टी लियां कियां सरै

म्हैं कोई मिनख थौड़ो हूं

कै छिपला खावतो फिरूं

सूरज बाप म्हनैं माफ करजो

कान पकड़’र कैऊं

गलती फेरूं कदैई नीं करूंला।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : सुमन बिस्सा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्कृति पीठ