वो जाणै उण रै

मन रा सुपना री विगतवार

चूल्हो फूंकती मां कांई जाणै?

बिणज करतो बाप कांई जाणै?

मां तो पगल्या री रेख

अर बाप कुंडळी मांय

पिंडत रा मांड्या आखर

वैमाता रा आंक जाण'र

याद राख्योड़ा है।

धनिये कितरा दिनां सूं

अेक कर राख्या है रात अर दिन

दौड़ रैया हा उण रै

दिमाग रा घोड़ा

पगां में नाळ ठोक्या छिण अर पल

कदैई-कदैई कैवती

कै म्हनैं पूरा करणा है

बापू अर आपरा सुपना

अणबिंध्या मोती जैड़ा सुपना

आभै रंग्या चीणा मोती

अर चुन्यां री लाल जैड़ा सुपना

सुपना सूरज री किरण जैड़ा

सुपना चंदरमा रै चकारियै जैड़ा

मिरगां री आंख

अर खरबूजा-तरबूजा री फांक जैड़ा

सुपना औड़ा कै जागती आंख्यां सूं दीसै

नींद लेवा सूं तूटै अर जागवां सूं पूरा हुवै

धनियो समझग्यो हो

कै बापूजी साची कैवै—

थूं ही तो है रे

म्हारा सुपनां नैं

पोवण वाळी आंख।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : रीना मेनारिया ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham