सूरज उगियो

होळै-होळै जाणै कोई

नुवीं नवेली बीनणी रो

घूंघटो उठायो।

दरसण हुया,

ऊजळा, मुळकता,

प्यारा सा मुखड़ा रा

रंग-रंगीलै संसार रा।

दूजै कानी

समन्द रो पाणी,

उछळ-उछळ कर

तीर सूं मिलण भाग्यो।

चारूं दिशावां में,

पंछी, पंख पसार्‌यां,

किलकारियां भरतां,

सोया मिनखां नै जगावण नै

सूरज रो सन्देसो देवण नै,

उड़ान भर रैया हा।

सूना घाट पुरीजण लाग्या।

बूढ़ा-बडेरा, लोग-लुगाई

न्हावै-धोवै, गीत गावै,

आई टाबरियां री टोळी,

नाचै-कूदै, धूम-मचावै।

समन्द री लहरां भी,

आयोड़ा पावणां नें

सामै लेवतां नाचण लागी।

नुवी उमंग,

नुवी फुर्ती,

पूरी ताकत

झिलमिल करती आसा

चमकण लागी।

अरे मिनख

करलै भलो उपयोग,

उण उमंग, फुर्ती, ताकत रो।

आळस नें त्याग;

कुटुम्म, समाज,

राज, देस

सब री आसा नै पूर

मत भूल भाईचारा नै

मत भूल देहरी

छिण भंगुरता नै,

मत भूल

समे रा बदळाव नै

सब सूं बड़ो धरम है

मानव धरम,

बड़ो करम है

करतब पाळणो

जुट जा तूं आपरै करतब में,

मिनखां रा धरम में

छिन-छिन रा उपयोग में;

गुण ले सूरज रा सन्देसा नै॥

स्रोत
  • पोथी : बदळाव ,
  • सिरजक : विद्योत्तमा वर्मा ,
  • संपादक : सूर्यशंकर पारीक ,
  • प्रकाशक : सूर्य प्रकाश मन्दिर, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
जुड़्योड़ा विसै