म्हारौ जीवण बळतौ बैसाख

सूरज अर धरती री साजिस सूं

छतरी ज्यूं तणियोड़ा लीला झाड़

भोभर ज्यूं सेकै है।

कोनीं

म्हनै छींयां रौ भरोसौ कोनीं

छींयां री दरकार कोनीं

माथा रौ तकियौ बणावण

साजो है हाल म्हारौ हाथ!

अर आंख्यां में चौमासै री उडीक रा

सपना हाल साजा है।

तप रे तप, सूरज! बल!

बाळ भलांई धरती

तौ म्हैं मझ दोपारां

तावड़ै सूती मुळक सकूं।

कस’र कियौ है काम

परसेवा सूं भीज्योड़ौ म्हारौ डील

आंख्यां में सपना अर बुगती में पांणी सांप्रत

कित्ती सोरी, कित्ती सुखी है म्हारी जिनगांणी।

स्रोत
  • पोथी : जातरा अर पड़ाव ,
  • सिरजक : रामेश्वरदयाल श्रीमाली ,
  • संपादक : नंद भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम