मातै थकी बावसी नै

—उगते कै

नेसै-शुरू थई जाए है

गरमा-गरमी

मनकं नी दोड़ धूप

नै

एणनी भीड दोड़ी पड़ै है

सोरा मातै

हवडै-हवडै

एणनो

शुरू थ्यो है

नवो दाड़ौ

अंगाश थकी धीरै-धीरै

उतरी र्या-तडका नै वेस मैं

वाटै नैकरें हैं एणा सोरा थकी

आमनु-तेमनु जावा हारू

भात-भात न-नै-

जुअं जुअं मनकं नजरै फेरवी र्यं हैं

हात बाँदी नै

कोट पेरी नै

फाटी टूटी कामरी ओढ़ी नै,

ने

बीड़ी लगाड़तै नै दम भरतै

आपड़ै आप नै-गरम राकवा-नी

कोशिश मैं

सब मानवी

नै

पिली आड़ी-खुणियारा मैं

कौकडु वराई नै बेटौ थकौ

एक सुरो

जे-

आणी टाड़ में

फाटी कमीज ने जाँगटी पेरी

ने

बेटौ...बेटौ

काल ताजं-ताजं हपनं

गोतवा मैं लागौ है

नै-आसासुक नौ

सोरौ गरम थावा माण्डै

जेम अस

सिनेमा पोस्टर

बदलात्ं देकी नै

भीड़ स्-भीड़

होटल नै बान्ने

ऊँना ऊँना समोसा नै जलबी नो

हवाद लेतं थकं मनकं

चा पीतं

पान थकी रंगणा राता सट्ट

होंठ

ने-एने अगाड़ी-ए-

घणु वदारै

देकतै-देकतै

खुणियारा थाकी बान्ने

नेकरी ने-ई-

सोरा मातै आवी ने ऊबो थाय

आपड्ं मेट्ं हपनं गोतवा नौ

विशार सौडी नै-

सांई —लो

आम नै आमस् लाम्बौऽऽ

थातौ जाय-

बावसी नै पासु डूबवा नी

वाड़ जुवै है-

नै-फेर-नै-फैर

नेन्दर नै काल मेट्ं हपन्ं

गुतवा हारू

सोरा नी गड़दी में खुवाई जाय।

स्रोत
  • पोथी : वागड़ अंचल री राजस्थानी कवितावां ,
  • सिरजक : बृज मोहन ‘तूफान’ ,
  • संपादक : ज्योतिपुंज ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादनी बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण