अणमोल हुय सकै
घणमोल हुय सकै
थांरी कविता
थूं कूड़ नीं लिखै
कूड़ बोलै ई नीं है
मनगत नैं उकीरै
भावां रै स्हारै
सबदां री करै जादूगरी
चतर खिलाड़ है थूं।
पण थूं तौ
भोग्या-अणभोग्या
मूंघा-मोत्यां सूं
धवळा पानां नै
सिणगारै ई है।
इण सिरजण री
साख कुण भरै-
अेकली मिनख जूण |
म्हूं करूं सिरजण
मन री तिरस साथै
तन री कलम
पसेव री स्याही सूं
बिडरूप-सी जमीं माथै
करूं लीकोरड़ा
उकीरूं नूंवां चितराम
रंग भरै सांवरियौ
सांपड़तै रचै रास
मोरियो-मोरणी
कानूड़ो-राधा।
इण सिरजण री
साख भरै-
आखी मिनख जूण
जीव-जिनावर
आभै सूं सुरजी।
पड़ूत्तर दीज्यौ
सिरजण कुणसौ?