हाको सह सकूं पण

नीं सह सकूं मूंन

मूंन बधावै अमूझणी

लागे जियां

घुटै है कोई मांय रो मांय

कियां ने इयां घुट-घुट’र मरतौ

आतमघात है मूंण।

स्रोत
  • पोथी : पैल-दूज राजस्थानी कवितावां ,
  • सिरजक : सीमा भाटी ,
  • प्रकाशक : गायत्री प्रकाशन
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