म्हूं इण धरती रै अधबीच

ऊभौ व्है’र देख रह्यौ हूं

अेकटक अंबर नैं

अेक सूनौपण

जो म्हारा हिवड़ा में भर्‌यौ

बीं नैं भूलवा रे खातर ही तो

म्हूं इण धरती नैं छोड़

अंबर में झांकू हूं

जद आंख्यां पाणी फर-फर आवै

बेरंग चिट्ठी ज्यूं

तो म्हूं होठां पर आया थूक नैं

पाछौ गळा में नांखूं हूं

अठै आयां पछै म्हारै खातर तो

फूल अर कांटा में भेद नीं रह्यौ

जितरी पीड़ा म्हनैं कांटां दी

बीं सूं सांवटी फूलां सूं मिली है

अब ईं बायरा ज्यूं बैवता

हाका हूक सूं संभळ रैवण री जरूरत है

या बात म्हनैं फूल नीं

कांटां ही बताई है

इण कारण या को जस

म्हूं कदी नीं भूलस्यूं

फूलां पै नीं

बखत रे आभा पै

कांटां री सेज पर भी

कांटां री सेज पर भी

म्हूं मुळकतौ थकौ झूलस्यूं।

आकाश री थाळी पर

‌अेक अणजाण्यौ कळाकार

सदियां सूं सितारा जड़ै है

अबकै शिल्पकारी रो

पद्म श्री पदक बीं नैं दे देवौ

तो थांकै कांई फरक पड़ै?

केळा रा रूंख

अबतांई इण मांग पर

सगळा का सगळा अड़्या है

आजादी रे पछै भी वे

बिना रीढ खड्या है।

इण शहर रा

कितरा समझदार व्हैग्या है मिनख

भविष्य सूं पैली डरै है

मेहमानां सूं देख लो

खिड़की में खड़्या-खड़्या बात करै है।

स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : सुरेश पारीक ‘शशिकर’ ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन