परभात री लाम्बी छींया

दोपांरा ताईं सरकती

सिमटगी छांनै छांनै

नीची धूण करियां

रूंख री जड़ां में

घुसण सारू

नुंवी नुवैली बीनणी ज्यूं

कुरेदै आपरै अंगूठै सूं जमी नै

मिनख रै विचार आयो

अठै दिखै जिको रैसी

अठै

कुण साथ चालै

जावण रो जतन करियां

छींया तो आणी जाणी

सिंझ्या तांई पसर जासी

पूरब सूं पिछम तांई

सूरज रै सागै उगै

ऊंधी चालै

साथै आथम जासी

आपरो ठिकाणो ढूंढ मिनख

थोड़ो नी

थनै जीवणै रो घणो हक है

पण परख खुद नै

अर आपरै मिनखाचारै नै

तो छींया है

बधसी अर सिमटसी।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत जनवरी 1996 ,
  • सिरजक : शिव सिंह सुमन ,
  • संपादक : गोरधनसिंह शेखावत ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
जुड़्योड़ा विसै