साली रई है रेल

गरीबी नी

सरकार ने हाते हाते।

इतो मांदा पड्या खाते खाते दाडो राते

अमता भूक ना मरोडा भुगता।

मनका नो अवतार

केम अलियो रामजी

जंगल में टपकतु टापरू

ददड़ती पटार

कर्जा नी कटार

सोरा मांदा

घोर मई भोपा

फिर भी मस्त थई खेतरे हांका

दारु ना दरोड़ा थकी मस्त

भीमा जीवा ने मारयो

सिपाही जेल लई ग्यो

खेतर गिरवी करी

मजूरी करी हाटकं तोड़ी

धोरा कोट ने कारा बूट वारा ना

खिशा भरी नै

कचहरी नी तारीख मातै

लटकी रया हैं

ने

रिश्वत आली आली ने भटकी रया हीं।

मुआ डोबा ने कागला हमरे।

एम साली रया हैं

राज तो दाडै-दाडै टेक्स वदारें

हाल्ला आपडे उपर फोड़ै हैं।

ने नेता मोटरं ने पांकड़ा उपर उडैं है।

एनी रोज-रोज दिवारी थाई रई है।

ने मुआ रोज रोज होरी बारी रया हैं।

केवत के —परणेतर परसाडी झटके

रडुंओ हुंगी-हुंगी ने मटके

हे धरती नो धरनार

गरीब ने घेरे आगलो जनम ने जुवै

खमा करी नाथ

उपकार करजो

आगले भवै।

सोपा ढांडा तो खेतर खाय

मनका धरती अरोगीरया हैं

ने नेताजी आवी आवी ने थापड़ी जाएं

ने उपर सुनकी भरी जाएं

सेतो रे सईयरे

भारत नी बइयरे

जंगल कपीरिया हैं।

आपड़ा हाटकं टूटीरिया हैं

खेतरं खुटी रिया हैं

वाणियां ने नाणियां लूटी रिया हैं।

स्रोत
  • पोथी : वागड़ अंचल री राजस्थानी कवितावां ,
  • सिरजक : छगन लाल नागर ,
  • संपादक : ज्योतिपुंज ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादनी बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण