ऊंट

बुगर बळौच बंबाळ, जूंग जाळोरी जब्वर।
अजगर कंध अझौझ भ्रगुट मुदगर भैराहर॥
जोल खंभ देवळा, कमठ ईडर कठठंता।
घण भरता जळ घाट, माट जैही कठठंता।
मजबूत थूंम डाचा मगर, जियां पूंछ करवत जिसा।
झोकिया सिंधु नुखतां झटकि, अंध कंध राकस इसा॥

नवहत्थी झोकरा, मसत फीफरा भरारा।
बगलां उरळी बिहूं, बगलि निकळै छिकारा॥
रंग केइक रातड़ा भसम धूंहर भमराळा;
जटा जूट ऊजळा, केइक भूरा केई काळा॥
मिळि रींछ रूप अधियामणा, जकस जिहाजां जम जिसा।
झोकिया सिंधु नुखतां झटकि, अंध-कंध राकस इसा॥

रब्बारा धप्पले, घग्घ पाकेट भयंकर।
नेसां चसलक नयण, झाळ झागूंडां नीझर॥
आका रीठ कुरीठ, वयंड छोडे वेछाड़ां।
इसा दीठ अवनाड, पीठ ले हलै पहाड़ां॥
कत्तार भार भर कठठिया, करै गाज झंझट करै।
हालिया जाणि सांमंद्रहूं, भाद्रव वादळ जळ भरै॥


हाथी

मदतळ डांणा मसत, झरै झरणां गिर नीझर।
अन चारा तजि अरध, पियै तड़कां नीरोवर॥
डग बेड़ियां दुलट्ठ, लगां चहुंवा पग लंगर।
आकासी सारसी, करै अग्राज भयंकर॥
भभरूत रजी धोसर भसम, काळदूत चख झाळ किध।
बनि बसै भूत काळा वयंड, वनखंडी अवधूत विध॥

छच्छ मास छाकियां, हुवा डाकियां हठीलां।
प्रचंड नील जिम पीठ, निलै त्रसलै जिम नीलां॥
सघण गाज जिम सुणे, गाज मद मसत गयंदां।
सादूळौ सिर पटकि, मरै संगार मयंदां॥
करि फौतकार झुक्कै कहर, चाढि सूंड फण चाचरै।
सिखराळ गिरंद चढि जांणि स्रप, काळदार झाटक करै॥

घणा इसा घेरिया, भचकि करि गडां भयंकर।
बैठ-बैठ बोलतां, नीठ बैठा जोरावर॥
कळां जळां सपळाय, तेल आंमळां चढावा।
कळां जड़े कांटिया, कळां बांधिया किलावा॥
कळ हूंत तिलक सिर काढिया, प्रगट धनख जिम पावसां।
कज्जळ पहाड़ झळ मँगळ किध, जांणै सिधां अमावसां॥

रसां भीड़ रेसमां, झूल घंटं वीर झलारी।
परां गदीलां परठि, धरां चाचरां अंधारी॥
जोख नोख गुलजार, कलाबूतां वणि कम्मळ।
तरह काम तारीफ, हौसनायक झाळाहळ॥
जगमगत फूल जरदौज रा, वयंडां पीठ वखांणिया।
अंधार निसां जांणै वरस, तारामंडळ तांणिया॥


घोड़ा

ऐराकी आरबी, धटी काछी खंधारी।
के बलकी सौवनी, केक तुरकी अग्रकारी॥
मोती सुरंग कमेत, लखी अबलख फुलवारी।
रंग जड़ाव हमरंग, हरी सुनहरी हजारी॥
मौहरी चँपा सेली समँध, पंचकल्याण पहचांनिये।
अन्नेक रंग पसमां अलल, जेहा मुखमल जांणिये॥

डाच लगांणा डहै, इसा पंडवां अपारां।
रौळ पसम खुरहरा मळै हाथळां अपारां॥
अंग काढै आरसी, पोत भरळकै पसम्मां।
दरियाई कस दीध, राळ लूंबै रेसम्मां॥
झाकत्ति किलाबूती सझे, तंग रेसम जुग तांणिया।
ऊकड़ा भीड़ उडणा इसा, उभै कड़ा कसि आंणिया॥

करे पोस जर करी, कड़ी सोब्रन कोतल कसि।
वागडोर रेसमी, तरह पचरंग धरे तसि॥
एम खोल आंणिया, परी करता न्रत पाए।
सूरतपाक सुचंग, जलज कुरँगा वधि जाए॥
के रजत साज जवहर कनक, छौगा मोत्रीयाळ छजि।
आंणे अनेक हाजर इसा, कमंध होण असवार कजि॥
स्रोत
  • पोथी : प्राचीन राजस्थानी काव्य ,
  • सिरजक : करणीदान कवियो ,
  • संपादक : मनोहर शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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