मकड़ी बणावै जाळ

पतळो अर झीणो-झीणो

जकै माय फंस जावै

केई जीव-जंत

गंवा देवै

आपरी जान।

मिनख बणावै जाळ

बिना धागां रो झीणो-झीणो

जको दीखै नीं

फंस जावै

केई जीव-जंत

अर भोळा मिनख

खो देवै सो क्यूं ई!

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : किशोर कुमार निर्वाण ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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