अेक 

गाँव की ठिठुरती सरदी में 
गोरी मन में आस करै 
पूछै जद सखि बिणजारी 
होठां पर बा चुप्पी धरै 
छोड़ गयो निरमोही बालम 
पणघट पर पाणी भरै 
रात पौष जद जलै रै मनड़ौ 
मनड़ा में सिसकार भरै 
साजन घर आवैलो कद रे 
घणी मन में उडीक करै 
कद बीतसी हंसमुख सरदी 
पाळौ माघ में दूणौ पड़ै 


दो 

आ सरदी बुढ़ापा में फोड़ा घणा घालै 
हाथ-गोड़ा दरद स्यूं होळै-होळै चालै 
डांफर जद चालै उतरादो बायरो बाजै 
लुगाई नैं छोड़ दूजो कुण काज साजै 

आस अणुती करां तो भी कांई करां 
गूदड़ा मांही बैठ्या-बैठ्या सी मरां 
पगां नैं भेळा कर सिरख में धरां 
आधी रात तांई जा’र नींद कें पड़ां

ओ ई तो रोजगो सांग हूं रैयो है
बुढ़ापा में आ’र करम फूट रैयो है 
लोग दिखावटी हंसमुख भलै ही बणौ 
सांचली पूछौ जी दुख पा रैयो है 





स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : विमलचंद गोलछा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ