असाढ में

उड़ती आंधियां रौ घुप्प अंधारौ

देख्यौ है थे?

अळगै सूं ऊमड़तौ दीसै-

लाल-लाल

ऊजलौ

उजास लियां

अर कनै आवतां हो जावै

कोयलां जिसौ काळो।

-किणी अत्याचारी राज रै तोबां जिसौ,

-राजनीतिग्यां रै थथोबां जिसौ,

-दूखती आंख्यां में

कसकतै घोबां जिसौ।

जद कोई

लाल-लाल लागती चीज

बण जावै घुप्प काळी,

घौळी चीजां में छिपियो हुवै

ऊंडो अर गैरो मैल

ऊजळी जिन्सां में पैठो हुवै अंधारौ

पाप

फूलां सूं झरता हुवै लोह रा खीरा-

तीखा अर चुभता

तद कांई हुवै?

देखूं हूं म्हैं

परंपरा सूं देखूं हूं

हरेक दफै यूं होवै

कीं मिनख

दोयला दुखी होय’र समदर मथै

इमरत काढै

अर कीं छळी

आखौ इमरत-घट लेय’र उड जावै

अर दूजां नै बांटण लागै

इमरत रौ लेबल लाग्यौ विस।

करोड़ां-करोड़ां मिनख

इमरत नांवधारी उण विस नै

पीवण नै मजबूर है

घणां रा कंठ तिरस सूं सूखा है

घणां नै विस पचावण रौ गरूर।

देखूं हूं म्हैं

नित देखूं हूं

माह में बिरछां सूं सगळा पात झड़ जावै

किणीं अनुसासन परब रै तहत

थर-थर कांपै

पीळा पड़ै

नागौ कर दै बिरछ नै

तौ छांनै-मानै कठैई कीं

कूंळी

छोटी

अदीठ

उत्सुक

निरभै

एक अनूठौ उजास

अर हिवड़ा रौ ऊंडौ हेत लियां

कोई रतनारी कूंपळ हंसें

डरो मत

कित्ती रात हुवौ-

उमस हुवौ, बरसात हुवौ,

अंधारौ

भूत-प्रेत बिच्छू अर सांप रा

अलेखूं आकार ले डरपावै

पण डरो मत

मन में हमेस, हर-हमेस, हर बखत

दीपै है एक सूरज

संकळप सूरज दीपै है मन में।

मदद सारू बारै क्यूं जोवौ?

बारै कुण करसी थांरी मदद,

मददगार तौ थांरौ मन है

मांयनै भाळौ ता सरी

डरपो मत।

स्रोत
  • पोथी : जातरा अर पड़ाव ,
  • सिरजक : रामेश्वरदयाल श्रीमाली ,
  • संपादक : नंद भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम