अेक

ढाय दो वा भींत

जकी बणाय दियो है

अेक दायरो

जिण सूं जकड़ीज्योड़ी है

थारी हंसी-खुसी,

जोबन अर चंचलता।

दोय

तोड़ न्हांखो वा सांकळ

जकी बदळै थांनैं

अेक जींवती लास मांय

अर भरै बसका

काळजै रो खुणो-खुणो

बळती आतमां रै बिचाळे

कोनी उठै धुंवो ई।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : हरिशंकर आचार्य ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham