डेटकँ नै दाढ़े आवी,

मकोड़ं नै आवी पाँखै।

आ, इन्द्र बाबो अवरो है।

केक तो हुकं हरोड़ उडै़,

नै केक जबरो झीकी नाकैं।

डेटकं नै दाढ़े आवी,

मकोड़ं नै आवी पाँखै।

कैवत है के वरतास भला हैं,

पण रेल साली जाय तो।

करोड़ो प्राणियँ ना जलाया हैं,

एनी माया नै कोण जाणै?

मेह मालवै ने पणीयारी झांपै,

धारे तो ऐने भिनाड़ी नाकैं।

केकं हुकँ हरोड़ँ उड़ैं

नै केकं जबरो झीकी नाकैं।

टापरिये सुई पडै़

नै बिल्डींगे पाड़ी नाकैं।

सेठणी तो भजियाँ खाए

नै चम्पी मऊड़ा सणां फाँकै।

आक्की रातर झीकै -

तोय में मुओ थाकै।

डेटकं नै दाढ़े आवी

मकोड़ं नै आवी पाँखै।

स्रोत
  • पोथी : वागड़ अंचल री ,
  • सिरजक : ललित लहरी ,
  • संपादक : ज्योतिपुंज ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham