ज्ञान रो अेड़ो दीयो भाया, नी लागे रे काठ।
पढबा-लिखबा चालो केन्दर, जोवे थांरी बाट॥
अंधियारे नै लाय लागगी,
उजियारो हरखावे,
शिक्षा रो सूरज ऊग्यो रे,
गांव गांव मुसकावे,
साक्षरता री गंगा ल्याई,
ओ इमरत सो पांणी,
जाग्या खेत, खलिहान जाग रह्या
जाग उठी रे ढाणी,
पंख-पंखेरू पांख पसारे,
रूंखा करवट बदली,
ताळ-तळैया माथे जमघट,
पनघट काया बदळी,
सरसुती दरवाज़े ऊभी,
नूई ज्योत रै सागै,
शाळां चमकी, ओरा चमक्या,
देवळ सिगळा जागै,
इणरा मोती गांठ बांधलो,
जिण में मोटो सार,
साक्षरता हिवड़े रो दीयो,
उण री आंख्यां चार,
नुओ जमानो थांने मिळसी, होसी थारा ठाठ।
ज्ञान रो सोनो अेड़ो बाया, नी लागे रे काठ॥