अेक
धोरौ
ठाह नीं कद
जा बैठ्यौ
आंधी रै साथै
दूजी ठौड़।
बापड़ो रूंख
जीवै तौ है
बिलखती जड़्यां साथै
स्यात आवै पूठौ
कोई धोरौ
आंधी रै साथै
राखै मरजाद
पूरै साध
रूंख री।
दोय
निराकार आंधी ई
दीन्हौ ओ रूप
लखीजै जको धोरौ।
आंधी नीं
आ आतमा है
आज अठै
कालै कठै
बसेरौ नवी काया
नुवो रूप
बेसकां क्यूं
थूं रूंखड़ा।