कड़चां मांही रजधानी कै, खास म्हारलो गांव छै।
स्हैरां साम्हो सट्ट सरकतो, सड़क सा'रलो गांव छै।
जगनाथ्या री जमीं बिकाणी, रिप्या रुळाणा रूपा का,
परभात्या नैं पगां पटकणों, नितका न्यारा दांव छै।
चक्क सवाई गौचर औरण, रैग्या बीरा कागद मँह,
मौका माळै जम्या माफिया,अंगद को ज्यूं पांव छै।
ज्या गट्टां पर पंच पटेल्या, न्याव साव सांचा करता,
बड़-पीपळ रा बै गट्टा अब, गंज्जेड्यां की ठांव छै।
नीम निमोळी नांव रैयग्या, पोढ़ण पीढ़ा पोळी का,
कंकरीट रो जंगळ उगियो, बालकण्यां री छांव छै।
रुळगी रीतां रामा स्यामा, अब तो पास पड़ोसी सूं,
सुख दुःख की कोई नं पूछै, कह्बा को ही गांव छै।
'चंचल' चाळा नया चालगा, बोली-चाली पहनावा,
पण पंचायत राज-काज मं, अब भी बो'ई नांव छै।