किण तरै जीवां

इण भीड़ मायं

खुद सूं आफळता

कीकर बचावां

खुद री साख अठै

मिनख रै सारू

घणौ दोरौ है

साख रै सागै जीवणौ।

कीकर करां

मिनख माथै भरोसौ

जिकौ सोंधै है

खुद नै भीड़ रै मांय

हरेक जगां

वो आफळै खुद सूं

अर उडीकै

आपरै सुपनां खातर

आंख्यां मींच’र

कर लेवै अंधारौ

घड़ी’क भर जीणै खातर।

जीवणौ पडैला

आफळणौ पडैला खुद सूं

पण कित्ता’क दिन

इण तरै जीणौ

आपरी साख रै खातर।

स्रोत
  • पोथी : बिणजारो पत्रिका ,
  • सिरजक : नलिनी कुम्भट ,
  • संपादक : नागराज शर्मा
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