ठौर ठौर घूमै लोग, रोटी री जुगाड़ में

खीज काढ़ै सर्द वाला शेर निज दहाड़ में।

लुळलुळ वोटर नैं, सलाम करै नेताजी

राजनिति खेलै लोग, धर्मां री आड़ में।

सासरला अर साला साली, आनै प्यारा लागै है,

परवा नई, बै का माँ अर बापू, जावै चाहे भाड़ में।

करै चाकरी चपरासी, अफसर रै घर अर दफ्तर में,

पिसीजै सुपारी जयां, पीसी जावै जाड़ में।

भोला भाला नैं ना राहत, बस बिचौलिया खार्या है,

बन्दर खार्या छीन'र रोटी, दो बिल्यां री राड़ में।

घर री परवा नई, पड़ौस्यां रै घर में अे ताकै है,

दीवारां रा कान ढूढ़ै, देखै छेद कुवाड़ में।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : विद्यासागर शर्मा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति