ऊभो है अेकलो रोही मांय रोहिड़ो।

पूजीजै बड़-पीपळ ज्यों

ना फूंलड़ा में बास

फळ लागै ना बणैं औषधि

ना देवां रां मंड-थानक

बणैं नहीं थारै नीचै।

ना दिवलो ना भोग चढ़ै

ना कोई थांरी जड़ सींचै।

पण तूं मत भूल रोहिड़ा

पंखी-पकेरू डाळ्यां बैठै

हिरण रोजड़ा थारी छाया

बैठ छांव में सुखावै गुवाळ्या

पसीनै स्यूं भीगी काया

गोर-गोरणी-कामण गावैं

थां रै नीचै गीत प्रीत रा।

जोबन चढ़ती छैल छबीली

देखै सपनां, मन रै मीत रा॥

स्है स्यूं महंगी लकड़ी थांरी

महलां चढ़ ज्यावैं बण फरनीचर।

दुनियां रो दस्तूर अस्यो है

मरियां पाछैं करसी कदर

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत (जनवरी 2021) ,
  • सिरजक : भानसिंह शेखावत ‘मरूधर’ ,
  • संपादक : शिवराज छंगाणी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी (बीकानेर)
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