एक जमानो हो
जद
मिनख रा डील में
मिनखरा' ज हाथ-पग हा
अर
मिनख रा करतव में
झलकतो हो
मिनखाचार!
आज
मिनख बणग्यो है
तारां रा
मायाजाळ में गूंथ्यौ
बिना आत्मा रो
एक
रोव झाड़तो रोबोट!
अबै
कंई जरूरत है
म्हारा कबीर नै
'कबिरा जनतर न बाजई....'
लिखबा री!
आज
इण रोबोट रूप मिनख में
चेहरा परै है शेर रो मुखौटो
अर पीठ कुत्ता री
जो
मुख सूं दहाड़बा रे लारै
वणीं री पीठ पर ऊभा
मोटा लोगां रै हुकम परै
हिलावे है दुम!
यो
कतरा ही तस्करयाँ री
करवा देवै है
काळाबाजारयां सं साँठ-गाँठ
चलातो रेवै है बन्दर बाँट
अर
अणी रा हाथां सूँ
हर बार बणै है महल
अरणी रा पग
रूंधता रेवै है झूंपा!
मिनख रो
दिल'र दिमाग
एक मशीन ही तो है
आज
कस्या मिनख रै
ढळकै है
'पर पीड़ा' नै देख'र
आख्यां सूं आँसू!
अणीरी'ज करतूतां सूं
खेत-खलिहान रा
दिगम्बर पुजारी री मैणत
हो जावै है
दो तरयां सूं चालती रोकड़ में जमा,
अर यो
वणां नै'ज कर है 'घणी खमा'!
या ही'ज बात कोनी
अणी
दिगम्बर पुजारी री
'घणी खमा' सूँ
ठसाठस भरा जावै है
हवेल्यां री तिजोरयां
अर यो
रोज लगावै है
भगवान रै
दो रूखी रोटयां रो भोग
अर चुपचाप सह जावै
अणी'ज तरयां सूं
धरती पे फेल्या कतरा ही रोग!
यो दिगम्बर पुजारी
गर्मी में
सूरज रा ताप सूं तप्यौ
सर्दी रा सांचा में ढळयो,
रीठो बाजती बरखा में भी
कोनी गळ्यौ!
अर सहतो रियौ
शेर रा मुखौटादार मिनख री
मोटा लोगां रे सामै
हालती पूँछ री चोट,
म्हारो कबीर पूछै है—
अरस्तु अर मार्क्स ने
कै आज रो मिनख
मिनख है या रोब झाड़तो रोबोट?