सुरच्छा : अेक

छोर्यां नीं जाणै
कै नीं बच पावै
बुलट-प्रूफ रै
जाबतै मांय
लूंठा लोग!

छोर्यां नीं जाणै
कै नीं बच पावै
गरभ-घर रै
जाबतै मांय
किन्या भ्रूण!

छोर् यां नीं जाणै
कै नीं बच पावै
लोटियै रै उजाळै मांय
मंडरावता माछर
काळ-छिबकली री
जीभ सूं...

औ सौ-कीं
नीं जाणै छोर्यां
तद ईज तो
बिना किणी बात री
गिनरथ कर्यां
ऊग आवै
कुकरमुत्तां रै दांई
अबोध
छोर्यां!

सुरच्छा : दो 

लारलै बरस
घर अर सड़क माथै हुयोड़ी
मौत रा आंकड़ा
हाथ माय लियां
चौबेजी कैवै हा!

कै लारलै बरस
पैंतीस लाख लोग बै मर्या
जका घरां में रैवै हा
अर सड़क माथै हुयोड़ा
हादसां सूं
फगत सातबीसी लोग ईज मर्या!

इण सारू
जे थे घणा जीवणा चावो
तो घरां नैं छोड परा'र
सड़क माथै
आय जावो!

क्यूं कै
लारलै बरस
घर अर सड़क माथै
हुयोड़ी मौत रा आंकड़ा
कैवै है
कै-
घर सूं बेसी
सड़क सुरच्छित
रैवै है!

स्रोत
  • सिरजक : मदन सैनी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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