भरोसा री भींत माथै

ऊभा है रिस्ता।

चांद, तारा, समंदर अर बिरखा

फगत झूठा दिलासा है।

साच पूछो तो

पसीनै री गंध

अर लहू सूं काठा बंध्योड़ा है

रिस्ता।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : शिवदान सिंह जोलावास ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham