आदमी कितौ सूगलौ हुवै

एक आळसी आदमी

सूगलो ही रैवै,

पण लुगाई जात

आदमी रो डोळ सुधारै।

जलम लेवण रै पछै टाबर नै

लुगाई ही नुहावै,

पछै बाळपणै मैं

साफ सुथरो रैवणो अर

सजणो संवरणो सीखावै

जद बणै आदमी

सूगलै सूं हैण्डसम।

पछै जवानी सूं लेय'र

आखी उमर तक

लुगाई रै खातर

सजतो संवरतो अर

साफ सुथरो रैवै।

पण फेर भी

हैण्डसम आदमी

लुगाई रो मान मारतो

टैम नीं लगावै।

स्रोत
  • सिरजक : राजदीप सिंह इन्दा ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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