कुण कैवै कै
लिछमी जलमी?
न्हावणी तेरस रै दिन
रंग अर गुलाल रै उडबा सूं
घर रो आंगणो ई रंगीजग्यो
जिण नैं धोता-पौंछो लगाता
लिछमी री दस्तक होयगी
तिंवार पै उपजी पीड़
नेन्ही किणी मैं ई बतावी कोनी
अर नरस रै आवण सूं पैला ई
घरै कन्या पांवणी होयगी।
अणछक ओ कांई!
गुवाड़ी में अक बार फूट्यो
कन्या रै आवण रो रोवणो
अर रुकमा दादी होयगी
राध्यो दादोसा होयग्यो
झूमा भुवासा
अर जानक्यो फूंफोसा बणग्यो
रमत्यां-रमकड़ा सूं फुरसत नी लेबाळा
भगोत्या रै माथै अेक भी केस
धोळो नी आयो, पण
बाप बणन रो ठप्पो लागग्यो।
सासू पूछ्यो कै बींदणी!
कांई हुयो?
धीयड़ हुई कै डीकरो?
झट बोल- थाळ बजाऊं कै छाजलो?
गूगरी बंटाऊं कै दळियो?
बापड़ी बींदणी कांई कैवै!
मायड़ रै सारू तो कुण धीयड़ अर कुण डीकरो
धन दियां धीयड़ अर बतळायां बेटो!
उण तो बरोबर-बरोबर
सेवा करणी है दोनूं री
माऊ री आंख्यां में कोई नेन्हो-मोटो नी हुवै
नीं कोई छोरो अर नीं कोई छोरी ।
पण, सास रै फरक हुवै जापो जणन में
जिकी सूंठ अर गूंद भी
न्यारो-न्यारो करै है जापा-जापा में
इत्तो भेद!
ओ भेद पण भावां रो खेल है
टाबरां रा रमकड़ा कोनी
मन रै विस्वासां रो
अर मन सांसां रो खेल है।