उजाळो अर अंधारो, पूरक है अेक-दूजा का।

अेक व्है जावै थोड़ोक कम तो

दूजो बध जावै वतरो को वतरो

थोड़ोक कम थोड़ोक बत्तो।

वश्यान ई, जश्यान सुख अर दुख,

पूरक है- अेक-दूजा का।

तमाम व्यस्तता के बिच्चै, जिंदगी में हापूधापू व्हैता,

खुशी नैं संभाळवा नै

‘खुद’ ऊं छेटी परा जाता दुखी मनख,

जद पा लेवै थोड़ाक ‘सेकंड’ खुसी का,

पाछा बध जावै आगै, आगली खुसी नैं संभाळबा नै

आपणा रोज का भायला दुख का लारै।

दुख होवै, तो खुसी का पाछै कुण दौड़ैलो?

वश्यान जश्यान, सपना अर हकीकत,

पूरक है- अेक-दूजा का।

कोई-कोई’क सपना, जलमै इण वास्तै कै

वांनैं बदळणो है अेक दन हकीकत में।

पण, कोई-कोई’क सपना मर जावै जलमतां ई,

का व्है जावै वांको सामनो हकीकत ऊं,

टेम ऊं पैली, जनम लेतां ई।

आछो है कोई-कोई’क सपना को मर जाणो,

तो लोग हकीकत में सपना देखबो छोड देई!

वश्यान जश्यान, मौन अर संगीत,

पूरक है अेक-दूजा का।

चुपचाप रैणो संगीत है अेक तरह को,

अर घंटा तक गाता-गाता चुप व्है जाणो भी।

कोई अेकदम साची बात कही है

‘दो सुरां बिचाळै मौन में रैवै असली संगीत’।

कदी-कदी’क चुप होया तो

आखो दन संगीत कुण सुणैला?

वश्यान जश्यान, आसा अर निरासा,

पूरक है अेक-दूजा का।

अेकदम निरास टैम में ई,

बच्यो रैवै थोड़ो’क खरी, पण जीवण जीबा को पाण।

आसा की लाठी का लारै व्है जावै,

चालता-चालता पार या जिंदगाणी,

भलां धीरै-धीरै, भलां सांतरी।

कदी-कदी निरास होवां, तो आसा कुण पाळी?

वश्यान जश्यान मलणो अर बिछड़णो,

पूरक है- अेक-दूजा का।

मिलण का खिणां नैं प्रेमी, राखणो चावै,

आपणी ओळूं का तळघर में लुका’र’

विरह किणनैं आछो लागै कदी भी!

पण, बिछड़णो वेई तो

मिलबा को अरथ कुण समझसी?

जश्यान मरणो अर जीणो,

पूरक है- अेक-दूजा का।

मनख, सारा मनख, मरै है रोज,

थोड़ा-थोड़ाक, टुकड़ा-टुकड़ा में।

मौत नैं गळै लगाबा नाठतो जीवण

अर जीवण नैं प्रेमी जश्यान बुलाती मौत,

पैदा करै जीवण जीबा को रोमांच

मौत वेई तो जीबा को मोल कुण करसी?

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : जय नारायण त्रिपाठी ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण