मत कर रूप रो अभिमान,

मत कर जोबन रो गुमान,

गोरी अे! गळ जावैलो।

उगतड़ो सूरज, संझ्यां ढळ जावैलो॥

बागां फूल्या फूलड़ा ले पानै-पानै रंग।

गन्ध ले गुलाबी उड़ग्यो वायरियो मलंग॥

भंवरा करै रसपान,

तितल्यां करै गुण गान,

सूख्यां झड़ जावैलो।

उगतड़ो सूरज, संझ्यां ढळ जावैलो॥

थूं कांईं जाणै दूजां पै नीं रीझ्यो भगवान।

प्रेम पै पसीजै भोळी दया रो निधान॥

जीं रै भाव सूं पिछाण,

सब में रमर्‌यो अणजाण,

ढूंढ्यां मल जावैलो।

उगतड़ो सूरज, संझ्यां ढळ जावैलो॥

फीको पड़सी रंग गमसी ओप रो उजास।

चार तो दिना में उड़सी जोबनिया री वास॥

झिल मिल ओस परवाण,

सूखै समन्दर निवाण,

मोती रूळ जावैलो॥

उगतड़ो सूरज संझ्यां ढळ जावैलो।

पाका खरसी पानड़ा, अर सूख जा सी साख।

सोनेड़ो-रूपै रो रूप जळ-बळ व्है राख॥

ढससी गोख मचाण,

मिटती नींवा अर रहठाण,

हंसो उड़ जावैलो,

उगतड़ो सूरज संझ्यां ढळ जावैलो॥

स्रोत
  • पोथी : आखर मंडिया मांडणा ,
  • सिरजक : फतहलाल गुर्जर ‘अनोखा’ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भासा, साहित्य अर संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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