जद ई आवै
म्हारै मन में कोई
नवो विचार
तो वो
हाथोहाथ ई
कविता में बदळ जावै।
म्हारै खातर स्यात
सबद कोई मायनो कोनी राखै...
म्हैं तो भाव अर संवेदना रो पुजारी!
फगत सबदां सूं सज्योड़ी कविता में
वा मौलिकता
वो सांच कठै?
सबद चाहै मिलै कै नी मिलै
म्हारै कैवणै रो अरथ
पूगणो जरूरी है।