आपरै सुवारथ

आखरां री मंडी मांय

मुळकतो-मुळकतो

तारां री छांव

कूड़ बेचतो

साच री कविता

स्यात धणियाप जतावै

उण झीणा आखरां

री पळकां

हुवै आखर उणरी बापोती भरमाया

ढळती रात

झूठ रा तारा गिणतो

कविता री दीठ

उणियारो झपटतो

कविता री ओट

आखरां सूं रमतो

हुवै कवि रो गुमान

संवेदणावां बेचतो।

स्रोत
  • सिरजक : राजेन्द्र जोशी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोडी़
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