आभै रै आंगणै
पळकतो चांदो
रंगोळी मांडता तारा
लुकमिचणी खेलती बीजळी
बायरियो खिंदांवतो
छांट्या रो कागद उडीकतो
बीज मुळक्यो
धोरी हरख्यो
रेत में न्हावंती चिड़कली
दियो बिरखा नै सामेळो
बादळ कड़कड़ाया गाज्या
धाप बरस्या
मुरधर पचायली छांट्यां
काढ्या बिरवा
होयो धान
खेतां में
बसगी मौज
गांव घाली घूमर
घर उमाव में नाच्या।
मुरधर में
जूण री आस बधगी
जमारै री आस पळगी
रूठो भलै राज मोकळो
पेट तो डांगर भी भरै
मिनख नै सीख तो भाई
कविता ई देवै
जगत रो लेखो कविता ई मांडै
काळजै री आग कविता ई बुझावै
जूण रा गीत कविता ई गावै
सुरसत रो मान कविता ई बधावै
म्हैं इत्ती बात सुण हारग्यो
जीतग्या आखर
म्हैं समूळी त्यागत सूं बोल्यो
म्हैं लिखूंला कविता
हां!
म्हैं लिखूंला कविता।