होठां तूं निकळ

कानां ताई पूगी

कानां रै बाद

कठै गमगी कविता!

निरा सबद नीं है

म्हारी कविता

भीतर री लाय है

बळत है बरसां री

हाय है।

मजूरां री-करसां री।

सोनल सुपना

रमै सबदां में

सबद उचारै राग

सुळगावै आग

जद रचीजै-कथीजै

कोई कविता

आव कविता बांच

मिलसी वा आंच।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : मनोज पुरोहित 'अनंत' ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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